खलीफा अब्दुल-मलिक-बिन-मरवान: क़ुब्बातुस सख़रा के वास्तुकार और इस्लामी तहज़ीब के बानी

फ़िलीस्तीन की दारूल हुकुमत अल-क़ुदस में मौजूद क़ुब्बातुस सख़रा (Dome of the Rock) का शुमार दुनिया की सब से खूबसूरत इमारतों में होता है। ये मस्जिद ए अक्सा का ही हिस्सा है और उसी के सेहन में मौजूद है, इस ईमारत की बड़ी अहमियत है। क्योंकि ये वो मकाम जहां से नबी ए करीम ﷺ मेराज पर तशरीफ़ ले गए थे। इस ईमारत के गुम्बद पर सोने की परत चढ़ी हुयी है, दरअसल ईमारत की तामीर के वक़्त जो बजट मुक़र्रर हुआ था उसमे से 1 लाख सोने के दीनार बच गए थे तो खलीफा के हुक्म पर उसे पिघला कर उस सोने को क़ुब्बातुस सख़रा के गुम्बद पर चढ़ा दिया गया था।

इसी के करीब एक छोटी सी ईमारत और मौजूद है जो इसी से मिलती जुलती है इसे क़ुब्बातुस सिलसिला (Dome of the Chain) के नाम से जाना जाता है। इस्लामी रिवायतों के मुताबिक हज़रत दाऊद (अ.स.) के ज़माने में यहां एक ज़ंजीर लटकती थी और जब कोई झूठा इंसान इसके करीब आता था तो वो गायब हो जाती थी इसी वजह से इसे Dome of the Chain यानि ज़ंजीर का गुम्बद कहा जाता है। खैर जिस शख़्स ने इन खूबसूरत ईमारत की तामीर करवाई आज कहीं न कहीं वो तारीख़ के पन्नों से गायब हो चुका है या फिर यूं कहें की हम सब जानना ही नहीं चाहते। 9 अक्टूबर (705 ई.) को 5वें उमय्यद खलीफा अब्दुल-मलिक-बिन-मरवान की यौम ए वफ़ात हुई थी जिसने इन खूबसूरत ईमारतों की तामीर करवाई थी।

अब्दुल-मलिक-बिन-मरवान अपने वालिद मरवान । की मौत के बाद खलीफा बने थे। अब्दुल-मलिक एक तालीमयाफ्ता और कामयाब हुक्मरान थे। 14वीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार इब्न खलदून के मुताबिक अब्दुल-मलिक सबसे महान अरब और मुस्लिम खलीफाओं में से एक हैं। रियासती मामलों को मुनज्जम करने के लिए वह मोमिनों के सरदार उमर बिन अल-खत्ताब के नक्श-ए-कदम पर चले।

खलीफा अब्दुल-मलिक-बिन-मरवान के दौर में अरबों ने काफी तरक़्क़ी की उनके ही दौर-ए-हुकूमत में अरबी जुबान को सरकारी जुबान मुक़र्रर किया गया था। और सभी दस्तावेजों का अरबी में तर्जुमा किया गया था। इसके अलावा मुस्लिम इलाकों के लिए एक नयी करेंसी कायम की गयी थी। जिससे सन् 692 ई. में बीजान्टिन सल्तनत के बादशाह जस्टिनियन II और उमय्यद खिलाफत के बीच ‘सिबास्तोपोलिस की जंग छिड़ गयी। जिसमे उम्मीवी फातेह रहे। अब्दुल-मलिक ने एक डाक सेवा का भी इंतेजाम करवाया। इसके अलावा कृषि और तिजारत में बहुत से सुधार भी करवाए। उन्होंने अपनी अफ़वाज (फौज) के साथ हिजाज़ और इराक़ पर बनी-उमैय्या के कब्जे को यकीनी बनाया।

और साथ-ही-साथ मगरिब और शुमाली अफ्रीका से बीजान्टिन सल्तनत को उखाड़कर अतलास की पहाड़ियों तक अपनी सल्तनत को बढ़ाया। हिजाज़ पर कब्जा करने के बाद मक्का की कमान उनके हाथों में आ गयी। उन्होंने टूटे हुए काबे की मरम्मत करवाई। और उस इमारत पर रेशम की चादर चढ़वाने की रिवायत भी उन्होंने ही शुरू करी।