“उस्मानी ताज से हैदराबादी तख़्त तक: जब ख़लीफ़ा की शहज़ादी बनी निज़ाम की बहू”

प्रिंसेस दुर्रे शहवर सल्तनत ए उस्मानिया के आखिरी ख़लीफ़ा सुल्तान अब्दुल मजीद II की बेटी थीं इनकी शादी हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान के बेटे आजम जाह से हुई थी।

जब अतातुर्क ने आखिरी उस्मानी खलीफा को खिलाफत से दस्तबरदार किया और फिर ख़िलाफ़त ए उस्मानिया के खात्मे का ऐलान कर दिया और खलीफा को जिलावतन कर फ्रांस भेज दिया तो अतातुर्क कमाल पाशा के इस ज़ालिमाना कदम का सबसे बड़ा विरोध उस वक़्त हिन्दोस्तान से ही हुआ था।

1919 में उस्मानी ख़लीफा की हिफ़ाज़त और ख़िलाफ़त की बक़ा के लिए हिंदोस्तान भर में आंदोलन शुरू हो गया था जिसे हम ख़िलाफ़त मूवमेंट या ख़िलाफ़त आंदोलन के नाम से जानते हैं। हैदराबाद के निज़ाम ने जिलावतनी में फ्रांस में रह रहे ख़लीफा को पैसे भेजना शुरू किये। दुनिया भर में विरोध को देखते हुए ब्रिटिश और कमाल अतातुर्क ने 3 मार्च 1924 को ख़िलफ़त के खात्मे का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही भारत में खिलाफत आंदोलन भी खत्म हो गया।

लेकिन रिश्तों को बनाए रखने के लिए हैदराबाद के निज़ाम ने अपने बेटे प्रिंस आज़म जाह के लिए ख़लीफा की बेटी शहज़ादी दुर्रे शेवर ( Dürrüşehvar Sultan ) को निकाह का पैग़ाम भेजा। और ये पैग़ाम लेकर गए थे ‘अल्लामा इकबाल’ शहज़ादी दुर्रे शेवर और शहज़ादा आज़म जाह का निकाह 1932 में फ्रांस में हुआ और साथ ही दूसरी शहज़ादी नीलोफ़र का निकाह शहज़ादा मोअज़्ज़म जाह से हुआ, इस तरह तुर्की की शहजादियां हैदराबाद के निज़ाम के घर बहू बनकर हिंदुस्तान आईं।