खिलाफत आंदोलन से निकला तालीमी इंक़लाब — जामिया मिलिया इस्लामिया की कहानी

मुहम्मद शाहीन

तहरीक-ए-ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक के समय सरकारी इदारों का विरोध हुआ। तब सरफ़रोशों की तालीम के लिए अलीगढ़ (बाद में दिल्ली) में जो तालीमी इदारा क़ायम किया गया, उसका नाम जामिया मीलिया इस्लामिया रखा गया। इस इदारे की संग-ए-बुनियाद आज ही के रोज़, 1920 में पड़ी थी।

जामिया मीलिया इस्लामिया के संस्थापकों में मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना शौकत अली, मौलाना महमूद हसन और हकीम अजमल ख़ान जैसे लोग थे। जामिया की इमारत की पहली ईंट मौलाना महमूद हसन (रह.) ने रखी थी।

गौरतलब है कि भारत में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी ने “जमियत-उल-उलेमा” के सहयोग से ही खिलाफत आंदोलन का संगठन किया था तथा मोहम्मद अली जौहर ने 1920 में खिलाफत घोषणापत्र प्रसारित किया था। भारत में मोहम्मद अली जौहर और शौकत अली जौहर — ये दोनों भाई — खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। जामिया मीलिया इस्लामिया की स्थापना अलीगढ़ में 1920 में हुई थी।

1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने के बाद, तत्कालीन मुस्लिम नेतृत्व — विशेषकर खिलाफत आंदोलन की अगुवाई कर रहे अली बंधुओं — को यह एहसास हुआ कि एएमयू अब पूरी तरह अंग्रेज़ों के नियंत्रण में चला जाएगा और वहाँ से स्वतंत्रता संग्राम के मतवालों को आवाज़ उठाने की अनुमति नहीं होगी।

जामिया मीलिया इस्लामिया की बुनियाद रखते हुए मौलाना महमूद हसन साहब (रह.) ने कहा था कि “इसका मकसद मुसलमानों की तालीम मुसलमानों के हाथों में रखना है।” जामिया की स्थापना से लेकर 1938 तक जामिया के प्रॉस्पेक्टस में उसका यह उद्देश्य लिखा जाता रहा, लेकिन 1939 में डॉ. जाकिर हुसैन ने जामिया का कुलपति बनने के बाद जामिया की अंजुमन के पंजीकरण के समय उसके उद्देश्य में थोड़ा संशोधन कर दिया। तब उसमें यह बात दर्ज की गई कि इसकी स्थापना का असल मकसद हिंदुस्तानियों, विशेषकर मुसलमानों को दीनी एवं दुनियावी तालीम देना है।

22 नवम्बर को हकीम अजमल ख़ान को पहला चांसलर और मोहम्मद अली जौहर को पहला वाइस-चांसलर चुना गया। सन 1925 में यह संस्था दिल्ली के करोलबाग क्षेत्र में लाई गई और फिर 1936 में दिल्ली के ही ओखला क्षेत्र में इसका अपना परिसर बनकर तैयार हुआ।

1920 में कोलकाता में कांग्रेस की मीटिंग हुई थी। शाम में “जमियत-उल-उलेमा-ए-हिंद” ने पुलिस और फौज की नौकरी को हराम क़रार दिया, और उसके दूसरे दिन गांधी जी ने विद्यार्थियों से स्कूल और कॉलेज छोड़ देने की अपील की। ख़ैर, वक़्त बीत गया — गांधी जी आंदोलन के हीरो के रूप में याद किए गए और उलमा पिछड़ेपन के प्रतीक बना दिए गए।

जामिया मीलिया इस्लामिया हमारी धरोहर है। यह मौलाना मुहम्मद अली जौहर और मौलाना महमूद हसन साहब का ख़्वाब, हकीम अजमल ख़ान की हिकमत, डॉ. मुख़्तार अंसारी की जुर्रत, और डॉ. जाकिर हुसैन सहित सैकड़ों बुज़ुर्गों की मेहनत का नतीजा है।

जामिया मीलिया इस्लामिया हमारे बुज़ुर्गों की मेहनत की कमाई है। यह हमेशा याद दिलाएगा कि किस तरह हिंदुस्तान को आज़ाद कराने के लिए हमारे बुज़ुर्गों ने कुर्बानियाँ दी थीं।